प्रेम के विविध प्रकार होते हैं परन्तु आज मैंने जिस प्रकार के प्रेम को चर्चा का विषय चुना है वो है वो है एक प्रेमी और प्रेमिका के बीच विवाह के पहले का प्रेम। आज कल इस प्रकार के प्रेम ने अपना जाल पूरी दुनिया पर फैला रखा है। जिसे देखो उसे प्रेम हो गया है। "आई ऍम इन लव" "आई लव यू" जैसे प्रसंग बहुत ही आम हो गए हैं।
परन्तु प्रेमी लोगो बहुत सारे दुखों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर : किसी को इस बात का दुःख है कि उनके पास प्रेम करने को बस एक ही प्रेमी है तो कुछ लोग इस बात से चिंतित हैं कि उनका प्रेमी एक से अधिक लोगों से प्रेम करता है। कुछ लोग इस बात से दुखी हैं कि उनका प्रेमी उनको उतना नहीं चाहता जितना वो अपने प्रेमी को चाहते हैं और कुछ इस बात से नाराज हैं कि उनका प्रेमी बेवजह ही उनको इतना प्रेम करता ही। कोई इस बात से परेशान है की उसका प्रेमी उसे छोड़ कर जाता क्यों नहीं तो कुछ इस बात से दुखी हैं की उनका प्रेमी उन्हें छोड़ कर चला गया। किसी न किसी वजह से अधिकांश प्रेमी दुखी ही हैं।
ऐसे प्रेमी लोगों को देख कर बचपन में पढी गई सूरदास कि ये पंक्तियाँ याद आती हैं:
उद्धो मन न भये दस बीस
एक हुतो गयो श्याम संघ को अवराधे ईश
आसा लागि रही तन स्वांसा, जीवहि कोटि बरीस
श्री कृष्ण के मथुरा चले जाने पर जब उद्धो गोपिकाओं को इश्वर में मन लगाने के लिए समझाने आते हैं तो गोपिकाएं उद्धो जी से कहती हैं कि: हे उद्धो! हमारे पास दस या बीस मन नहीं है। हमारे पास तो बस एक ही मन था जो श्री कृष्ण के साथ ही चला गया है, अब किस मन से इश्वर कि आराधना करें। ये जो शरीर में साँस चल रही है बस ये ही जीना कि एक आशा है जिसके सहारे करोणों वर्षों तक जी सकते हैं अन्यथा श्री कृष्ण के पश्चात् जीवित रहना सम्भव नहीं था।
श्री कृष्ण के चले जाने के पश्चात् भी श्री कृष्ण के प्रति गोपिकाओं के प्रेम में किसी प्रकार की कमी नहीं आती है। सच्चे प्रेम के ऐसे उदाहरण आज की दुनिया में मिलना अति दुर्लभ होता जा रहा है।
मुझे लगता था कि, प्रेम, दुनिया का सबसे सुंदर एहसास है परन्तु प्रेम के प्रति मेरा विचार बदलता जा रहा है। आज कल प्रेम का अर्थ केवल कुछ पल तक मन बहलाना हो कर रह गया है। अगर आज के युग में प्रेम ऐसे ही चलता रहा तो, शायद एक दिन प्रेम भी ये भूल जाएगा की प्रेम वास्तव में होता क्या है।
Thursday, April 10, 2008
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2 comments:
बढिया!
सही है.
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