Tuesday, April 8, 2008

नवरात्रों की यादें

नवरात्रों के आते ही याद आती है कुछ २० साल पुरानी बातें जो जवानी से मुझे बचपन की तरफ़ खींच कर ले जाती हैं और दिखाती हैं वो दृश्य जब शाम को स्कूल से आने के बाद मोहल्ले के सारे लड़के अच्छे अच्छे कपड़े पहने हुए अपनी अपनी साइकिल ले कर मेरे घर के बड़े दरवाज़े के सामने इकठ्ठा हो जाते थे। मन में "माँ" के दर्शनों की लालसा और सबके दिल में मन्दिर जाते हुए साइकिल के रेस की चाह होती थी। मन्दिर जाते हुए माँ से प्रसाद चढाने के लिए २ रुपये मिला करते थे जिसमे से कभी कभी १.५० रुपये का प्रसाद चढा कर ५० पैसे बचा लिया करते थे और उन ५० पैसों की इमली/टॉफी/आइसक्रीम खाया करते थे।

मन्दिर की ओर जाते हुए (साइकिल की रेस लगाते हुए) दूर से ही भक्ति गीत सुनाई देते थेनवरात्रों के समय मन्दिर में बड़ा लाउडस्पीकर लगा होता था और सुबह से ही भक्ति गीत बजने चालू हो जाते थे जो रात तक बजते रहते थे। ढेर सारी चमचमाती झालरों और बड़े बड़े फ्लश लाइटों से सारा मन्दिर जगमगाता रहता था। पास में ही एक तालाब था जिसमे सबसे पहले हाथ और पैर धोया करते थे और प्रसाद लेकर लम्बी सी कतार में खड़े हो जाते थे। कतार में खड़े होने के बाद गिनती शुरू होती थी की कितने आदमी हमारे आगे लगे हुए हैं। कभी कभी ये गिनती २०-२५ होती थी और कभी कभी (प्रायः अष्टमी के दिन) २००-२५० हुआ करती थी।

कतार में खड़े हुए सबके बीच साइकिल रेस वार्तालाप का गंभीर विषय रहता था की आज कौन जीता/अब तक कौन कितनी बार जीत चुका है/अब तक किसने सबसे तेज साइकिल चलाई। बात करते करते दर्शन का वक़्त आ जाता था और दर्शन करने के बाद सारे लोग थोड़ा प्रसाद खाते थे और थोड़ा घर पर बांटने के लिए बचा लेते थे।

नवरात्रों के समय मन्दिर में मेला लगा करता था जिसमे मनोरंजन के बहुत साधन होते थे जैसे बड़े बड़े झूले, अलग अलग करतब, गुब्बारे वाला, तोते से भविष्य बताने वाला, नाचने गाने वाले, बाइस्कोप से फोटो दिखाने वाला इत्यादी। खाने के लिए चाट, पूरी सब्जी, चना जोर गरम, समोसा, पकोडी और सबसे ज़्यादा बिक्री करने वाला होता था आइसक्रीम वाला।

दर्शन करने के बाद हम सभी लोग मेले में जाते थे और थोडी देर तक मौज मस्ती करते थे। बचे हुए ५० पैसों से कुछ खाते थे, कभी कभी झूला झूल लिया करते थे और कभी कभी गुब्बारे भी खरीद लिया करते थे।

माँ के शक्त निर्देश पर कि "शाम होने से पहले घर आ जाना" सभी लोग अँधेरा होने से पहले अपनी अपनी साइकिल ले कर और पुनः साइकिल कि रेस लगते हुए वापस घर को आ जाया करते थे।

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