Thursday, July 12, 2007

सौभाग्य और दुर्भाग्य के बदलते रुप

बात दो दिन पुरानी है। दुर्भाग्यवश मेरा मोबाइल फ़ोन कहीँ खो गया था। जब मुझे एहसास हुआ कि मेरा मोबाइल मेरे पास नहीं है तो मेरा माथा ठनका और थोडा भी विलंब ना करते हुए और ये मनाते हुए कि किसी भले इन्सान ने मेरा मोबाइल लिया हो मैं अपने मोबाइल पे फ़ोन करने लगा। दो घंटे के अथक प्रयास के बाद उन सज्जन ने (जिन्होंने मेरा मोबाइल लिया था) मेरी कॉल ली और मेरे इस दुर्भाग्य पर अपना उल्लू सीधा करने कि सोची। महानुभाव ने मेरे मोबाइल को वापस करने के लिए मेरे सामने ५०$ का प्रस्ताव रखा। मेरा मोबाइल दो साल के अनुबंध में है जिसके पूरा ना होने पर मुझे १७५$ का दण्ड देना होगा। इस बात को विचार करते हुए मैंने उनको ५०$ देना स्वीकार कर लिया। पर मैं भी ठहरा बनिया ऐसे कैसे किसी को ५०$ दे दूं। कुछ भले लोगों कि सम्मति से मैंने पुलिस में रिपोर्ट कर दी।
अब बात बताता हूँ मोबाइल चोरी करने वाले सज्जन की बुद्धिमानी की। सज्जन को ये लगा कि मैं कोई डरपोक बालक होऊंगा और उनके पैसे मांगने पर मैं चुप चाप उनको पैसे दे के मोबाइल ले आऊंगा। ये सोचते हुए उन्होने मुझे अपने इलाक़े का पता और अपना नाम बडे प्रेम से बता दिया और बोला कि "४ बजे फिर से बात करना तब मैं वो जगह बताऊंगा जहाँ तुम्हे पैसे दे के मोबाइल लेना है।" ये सब सुन के मुझे इस बात का पूरा भरोसा हो गया कि ये सज्जन पहली बार मोबाइल कि फिरौती कि रकम माँग रहे हैं।
इस बीच मैंने पुलिस को ये बोल दिया कि मैं ४ बजे उससे मिलने का स्थान पूछ के बताता हूँ। अमेरिका कि पुलिस बड़ी कि सहायक होती है, इसलिये पुलिस ने मेरी बात मान ली और मुझ से ४ बजे मिलने को बोला।
पुनः ४ बजे मैंने उन महानुभाव को फ़ोन किया तो उन्होने मुझे एक जगह और वहाँ पहुँचने का रास्ता बता दिया। बस फिर क्या था, मैंने पुलिस वाले भाई साहब को अपने साथ लिया और पहुंच गया बताई हुई जगह पर। मैंने पुलिस वाले भाई साहब से बोला कि पहले मैं जाता हूँ और बात करता हूँ और थोड़ी देर बाद आप आ जाना।
जब मैं उन महानुभाव के पास पहुँचा और देखा कि वो अपने घर के बाहर ही खडे हैं तो मुझे उनकी इस बुद्धिमानी पे थोड़ी हंसी आयी परंतु जब मैंने ७ फ़ीट लम्बा ४० इंच चौड़ा आदमी देखा तो मेरे होश उड़ गए और सारी हंसी गायब हो गयी...... हिम्म्मत कर के मैं उनके पास पहुँचा और उन्होने सबसे पहले मुझ से फिरौती कि रकम कि माँग कि। मैंने बोला मुझ जैसे गरीब के पास ५०$ कहॉ से होंगे। पर वो अपनी बात से अडिग था। हमारे बीच वार्तालाप थोडा गरम हो ही रह था कि पुलिस वाले भाई साहब ने आकर स्थिती को संभाल लिया और उन महानुभाव को हथकड़ी लगा दी और मेरा मोबाइल मुझे वापस दिला दिया। बाद में पता चला कि उसे छोड दिया गया है और उनके ऊपर कुछ जुर्माना लगेगा। मैं बार बार ये ही सोचने पे विवश हो रह था कि वो मेरा दुर्भाग्य था कि मुझ से मोबाइल गिर गया था या उन महानुभाव का दुर्भाग्य था जो ५०$ का सपना देखते देखते कारागार जाते जाते बचे और जुर्माना दे बैठे...... जब मेरा दुर्भाग्य था (मोबाइल खोना) तब किसी का सौभाग्य था (५०$ मिलने की आशा) और जब मेरा दुर्भाग्य सौभाग्य में परिवर्तित हुआ (मोबाइल वापस मिला) तब उन्ही सज्जन का सौभाग्य दुर्भाग्य में परिवर्तित हो गया (जुर्माना देना पड़ा)।
दुर्भाग्य अथवा सौभाग्य किसी का भी हो ऊपर वाले कि अनुकम्पा से मुझे मेरा मोबाइल वापस मिल गया था और मेरे चहरे पर हंसी वापस आ गयी थी :-) ....

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