"सभ्यता जहाँ पहले आयी, जहाँ पहले जन्मी है कला
अपना भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला
संसार चला और आगे बढ़ा, आगे बढ़ा बढ़ता ही गया"
आज जब मैं इन पंक्तियों को पढता हूँ और वर्त्तमान भारत कि छवि को देखता हूँ तो मुझे ये पंक्तियां निरर्थक सी जान पड़ती हैं. सभ्यता जहाँ पहले आयी तो पर सबसे पहले चली भी गयी. आज कल जिसे देखो वो पास्चात्य सभ्यता के पीछे भागते जा रह है और रुकने का नाम ही नहीं लेता. सारा संसार भारत के पीछे तो चला लेकिन जब आगे निकला तो इतना आगे निकला कि आज भारत वहाँ तक देख भी नहीं पाता है.
पास्चात्य सभ्यता के बढते कदम हर मोड़ पे दिख जाते हैं. मिसाल के तौर पे:
शहरों में रहने वाले स्त्री पुरुषों, बालक बालिकाओं के कपडे दिन पे दिन छोटे होते जा रहे हैं।
टीवी के कार्यक्रम हो या कोई चलचित्र सब में दो तीन शादी करना या शादी के बाद पर स्त्री संबंध रखना दिखाया जा रह है और सबको ये बडे पसंद आ रहा हैं।
किसी भी लडकी का किसी भी लड़के के साथ शारीरिक संबंध आम बात हो गयी है।
clubs, discos में अगर कोई नहीं जाता तो ये माना जाता है कि वो बहुत ही उत्साह हीन व्यक्ति है।
मैं ये नहीं कहता कि देश का विकास नहीं होना चाहिऐ, विकास जरूर होना चाहिऐ लेकिन अपने सभ्यता में रहकर और इस प्रकार से कि वो सारी दुनिया के लिए एक उदाहरण बन जाये। किसी कि संस्कृति/सभ्यता को चुरा के या नक़ल कर के विकास करने से क्या लाभ.
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2 comments:
brother u have really impressed me bt ur weitings
u don't worry about any one's comment but keep on helping others
u'll be surely blessed by all
thanks
thnx dude.......u hv helped me lot wid my debate on dis topic..........
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