आदि काल से ये चर्चा का विषय रहा है कि "भरत" और "लक्ष्मण" में किस का भ्रात्र प्रेम महान है। एक ओर तो लक्ष्मण हैं जिनका भ्रात्र प्रेम सारी उपमाओं से परे है वहीँ दूसरी ओर भरत हैं जिन्होंने भ्रात्र प्रेम के लिए अयोध्या जैसा राज्य, राज वैभव सब कुछ त्याग दिया। "प्रेम कि असली शक्ति उसके निस्वार्थ होने में है और जब प्रेम निस्वार्थ होता है तो वो कुछ नहीं माँगता बल्कि प्रेमी को कुछ देना चाहता है। उसके सुख उसकी प्रसन्नता के लिए सब कुछ न्योछावर कर देना चाहता है।" भरत और लक्ष्मण दोनो ने भ्रात्र प्रेम के लिए सब कुछ छोड दिया।
आज भी इन दोनो का प्रेम वाद विवाद का महत्वपूर्ण विषय है।
"प्रेम निस्वार्थ होता है " अगर इस पर विचार किया जाये तो भरत का प्रेम लक्ष्मण से कहीँ महान है। लक्ष्मण भ्रात्र प्रेम के कारण अपने भाई से अलग नहीं रह सकते थे परंतु भरत ने भाई कि आज्ञा रखने के लिए भाई से अलग रहना भी स्वीकार कर लिया। दोनो ने ही राज वैभव का त्याग किया परंतु भरत ने नगर में रह कर भी तपस्वी जैसा वेश धारण किया जो अत्यंत दुष्कर है। भरत ने अयोध्या का राज्य को तिनके के समान तुच्छ समझकर अपने भाई के लिए उसका त्याग कर दिया जो उनके निस्वार्थ प्रेम को दर्शाता है।
"प्रेम निश्चल होता है" अगर इस वाक्य को माना जाये तो लक्ष्मण का प्रेम महान है। प्रेम में व्यक्ति को सब कुछ भूल के अपने प्रेमी के साथ ही रहना चाहिऐ। प्रेम सभी भावनाओं से परे है और अभी धर्म से भी ऊपर है। प्रेम के आगे कोई धर्म कोई भावना का कोई स्थान नहीं है।
"प्रेम कि असली परीक्षा वियोग में है"। भरत का प्रेम इस का एक उदाहरण है। भरत ने भाई प्रेम के वशीभूत अपने भाई से वियोग स्वीकार कर लिया परंतु लक्ष्मण अपने भाई से वियोग स्वीकार नहीं कर सके।
दोनो भाईयों का भ्रात्र प्रेम अपने अपने स्थान पे महान है और आज भी आदर्श भ्रात्र प्रेम का उदाहरण है।
Thursday, July 12, 2007
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