सहसा मन की अभिलाषाओं को बल मिलता दिखाई देता है,
दूर दीवार के पीछे से कोई झांकता दिखाई देता है।
मुझे लगा मेरी मंजिल, मेरा सौभाग्य झाँक रह है,
पर पूछने पे पता लगा मेरा अंतःकरण मुझे ताक रह है।
समझने की बात है, जिन मंजिलों का मैं इंतज़ार करता रहा,
वो मेरे अन्दर ही थी पर अब तक मैं उन को पहचान ना सका।
Wednesday, July 25, 2007
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