ना जाने क्यों जब भी ये गाना सुनता हूँ तो ये कहीं न कहीं से दिल के तारों को छेड़ जाता है। आज शायद कुछ बीती बातें याद कर रहा था और सहसा इस गाने के बोल सुनाई दिए। काफ़ी देर तक सोचता रहा गाने के बोलों की सच्चाई को।
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे...
दो पल मिलते हैं, साथ साथ चलते हैं
जब मोड़ आए तो बचके निकलते हैं
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे...
यहाँ सभी अपने ही धुन में दीवाने हैं
करे वोही जो अपना दिल ठीक माने हैं
कौन किसको पूछें, कौन किसको बोले
सबके लबों पर अपने तराने हैं
ले जाए नसीब किसको कहाँ पे
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे...
ख्वाबों की ये दुनिया है, ख्वाबों में ही रहना है
राहें ले जाए जहाँ, संग संग चलना है
वक्त ने हमेशा यहाँ नए खेल खेले
कुछ भी हो जाए यहाँ, बस खुश रहना है
मंजिल लगे करीब सबको यहाँ पे
कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे...
आज के युग में कितना सटीक लगते हैं इस गाने के बोल। आज की दुनिया की ये ही सच्चाई है। आज तक ना जाने कितने लोगों को दोस्त बनाया/समझा। कुछ तो अपना मतलब सिद्ध करके चलते हुए और कुछ ने बिना किसी कारण के मुँह फेर लिया। ज़िंदगी तो अपनी रफ़्तार से चलती ही रहेगी परन्तु उन मोड़ों कि यादें और कसक हमेशा इस दिल में रह जायेगी जिस मोड़ से वो बच के निकले थे।
Thursday, February 14, 2008
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